ज़िन्दगी गुलज़ार है
२३ नवंबर – ज़ारून
सो अब मुझे शादी करनी होगी और मुझे ये बात किस क़दर अजीब लग रही है.
मैंने आज तक शादी के बारे में सोचा ही नहीं, ना किसी औरत ने मुझे इस हद तक मुतअस्सिर
(प्रभावित) किया कि मैं शादी के बारे में सोचने लगता या शायद ये कहना ज्यादा बेहतर
होगा कि मैं किसी औरत के बारे में ऐसा सोचना ही नहीं चाहता. मेंरे लिए औरत सिर्फ़
टाइमपास करने का एक ज़रिया ही है, बस. और अब एक औरत के साथ
मुस्तकिल (निरंतर, स्थायी) तौर पर ज़िन्दगी गुज़ारना बहुत
मुश्किल नज़र आ रहा है. लेकिन माँ के पास तो इस मौज़ू (विषय, मुद्दा)
के अलावा और कोई मौज़ू होता ही नहीं.
मैं जब भी उनके पास बैठता हूँ, वो किसी ना किसी लड़की
का ज़िक्र शुरू कर देती हैं. मैं मॉरिशस में सारा की शादी के लिए छुट्टियाँ लेकर
आया हूँ और वो तो मेरी शादी पर भी तैयार नज़र आती है. सारा की शादी पर भी वो मुझे
लड़कियाँ ही दिखाती रही और मैं शादी के फंक्शन को भी ठीक से एन्जॉय नहीं कर पाया.
हालाँकि वहाँ एक से एक ख़ूबसूरत लड़कियाँ थी, लेकिन मैं जानता
था कि मॉम मुझ पर नज़र रखे हुए है और अगर मैंने टाइमपास के लिए भी किसी लड़की में
इंटरेस्ट दिखाया, तो वो यही समझेंगी कि मुझे वो लड़की पसंद आ
गयी है और ये भी मुमकिन था कि वो शादी के फंक्शन के दौरान ही उस लड़की की फैमिली से
बात पक्की कर लेती. इसलिए मुझे बहुत अलर्ट रहना पड़ा.
आज फिर वो यही ज़िक्र लेकर बैठ गयी थी कि मैं शादी नहीं, तो
मंगनी कर जाऊं. मेरी टालमटोल पर उन्होंने कहा था, “ज़ारून!
तुम शादी क्यों नहीं करना चाहते?”
“मैं शादी करना चाहता हूँ और करूंगा भी, लेकिन अपनी पसंद की लड़की से और वो लड़की अभी तक नज़र नहीं आई.” मैंने उन्हें
टालने की कोशिश की थी.
“ज़ारून! जो लड़कियाँ मैं तुम्हें दिखा रही हूँ,
वो सब अच्छी हैं. तुम उनमें से किसी को पसंद करने की कोशिश क्यों
नहीं करते?”
“मैं उन्हें पसंद नहीं कर सकता क्योंकि उनमें वो
खूबियाँ नहीं हैं, जो मैं चाहता हूँ.”
“वो ख़ूबसूरत हैं, दौलतमंद हैं,
एजुकेटेड हैं, अच्छी फैमिली से ताल्लुक रखती
हैं. इनके अलावा और क्या क्वालिटी चाहिये तुम्हें, जो उनमें
नहीं हैं.”
“हाँ उनमें ये सब कुछ है, लेकिन
इनके अलावा भी एक चीज़ होती है और वो किरदार है. मुझे ऐसी लड़की चाहिए, जिसका कभी कोई स्कैंडल ना हुआ हो, जिसने मजाक में भी
किसी के साथ फ़्लर्ट ना किया हो और ना ही किसी के उसके साथ कोई अफेयर चलाया हो.”
मेरी बात पर माँ मेरा मुँह देखती रह गयी थी.
“ज़ारून! मैं जिन लड़कियों की बात कर रही हूँ, वो भी आवारा नहीं है. उनमें तुम्हारी मतलूबा (अपेक्षित) अहलियत (काबिलियत)
पायी जाती है. वो बहुत अच्छी हैं.”
“मुझे पाकिस्तान से गए सिर्फ़ दो साल हुए हैं,
इन दो सालों में कौन सा इंकलाब आ गया है हमारी सोसाइटी में कि सारी
लकड़ियाँ पारसा (फ़कीर) हो गई हैं? अब वो फ़्लर्ट नहीं करती या
उनके स्कैंडल नहीं बनते?”
मैंने बड़ी तुर्शी (रुखाई) से मॉम को जवाब दिया था और उन्होंने भी
इसी लहज़े में कहा था, “किसी के साथ फ़्लर्ट करने का मतलब ये नहीं होता कि
वो लड़की करप्ट है और तुम ख़ुद कौन से पारसा हो? तुम ख़ुद भी तो
ये सब कुछ करते हो.”
उन्होंने साफ़ मुझ पर तंज़ किया था. एक लम्हे के लिए मैं वाकई खामोश
हो गया था,
“ठीक है मेरे अफेयर्स रहे हैं और मैं एक फ़्लर्ट हूँ. लेकिन मैं मर्द
हूँ, ये कर सकता हूँ. मेरी बीवी को मेरे जैसा नहीं होना
चाहिये. मेरी ज़िन्दगी में लाख लड़कियाँ सही, मगर उसकी ज़िन्दगी
में मेरे अलावा कोई और नहीं होना चाहिए और गर आपको ऐसे लड़की नहीं मिलती, तो फिर ये काम मुझ पर छोड़ दें.”
मैं ये कहकर कमरे से निकल गया था. मेरे लिए मॉम को ये बात समझाना
मुश्किल हो रहा था कि मैं किसी बदनाम लड़की से शादी नहीं कर सकता और वो मेरे सामने
ऐसी ही लड़कियाँ ला रही थी.
इन चंद दिनों में मैं ये बात तो अच्छी तरह समझ गया हूँ कि वालिदैन
(माता-पिता) कितने भी आज़ाद ख़याल क्यों न हो, बच्चों की शादी के मामले में वो बहुत क़दामत-पसंद
(पुराने ख़यालात ला, रूढ़िवादी) हो जाते हैं और हम जैसे फैमिली
में तो शादी भी बिज़नस डीलिंग का एक हिस्सा होती है. लोग अपने बिज़नस को अपने बच्चों
की शादियों के ज़रिये वासी (expand) हैं. मगर मैं ऐसी किसी
बिज़नस डील का हिस्सा नहीं बनना चाहता. मैं ज़िन्दगी को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक
गुज़ारना चाहता हूँ क्योंकि ये मेरी जिंदगी है और फ़िलहाल तो मैं अपनी मौज़ूदा
ज़िन्दगी से बहुत ख़ुश हूँ और शादी का फंदा अपने गले में नहीं डालना चाहता. हाँ,
जब शादी करूंगा, तो ऐसे लड़की चाहूंगा, जो ख़ूबसूरत हो, वेल-ऑफ हो, अच्छी
फैमिली से ताल्लुक रखती हो, एजुकेटेड हो और करैक्टर-वाइस
स्ट्रांग हो. फ़िलहाल मैं बीवी जैसा कोई बखेड़ा पालना नहीं चाहता क्योंकि बीवी मुझ
पर पाबंदियाँ लगाने की कोशिश करेगी और वो मैं नहीं चाहता.
मॉम अगर मेरी डायरी पढ़ लें, तो वो मुझे क़दामत-पसंद (पुराने ख़यालात का, रूढ़िवादी), तंग-नज़र और पता नहीं क्या-क्या कहेंगी,
मगर मैं अपने आमाल (उम्मीद) नहीं छुपा सकता. जो मैं हूँ, वो मैं हूँ और ख़ुद को बदलना बहुत मुश्किल काम है, कम-अज़-कम
मैं ये नहीं कर सकता.
Radhika
09-Mar-2023 04:26 PM
Nice
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Alka jain
09-Mar-2023 04:13 PM
बेहतरीन
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